ज़कात

ज़कात (अरबी: زكاةzakāt, "पाक या शुद्धी करने वाला", और ज़कात अल-माल زكاة ألمال, "सम्पत्ती पर ज़कात ", या "ज़काह") इस्लाम में एक प्रकार का "दान देना" है, जिसको धार्मिक रूप से ज़रूरी और कर के रूप में देखा और माना जाता है। कुरआन में सलात (नमाज़) के बाद ज़कात ही का मक़ाम है. शरीयत में ज़कात उस माल को कहते हैं जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है।

इस्लाम धर्म के अनुसार पांच मूल स्तंभों में से एक माना जाता है, और हर मुस्लमान को अपने धन में से ज़कात की अदायगी ज़रूरी है। यह दान धर्म नहीं बल्कि धार्मिक कर या टैक्स माना जाता है और फ़र्ज़ भी है. शरीयत में ज़कात उस माल को कहते हैं जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है। इस्लाम की शरीयत के मुताबिक हर एक समर्पित मुसलमान को 52.5 तोला चाँदी (612.36 ग्राम) या 7.5 तोला (87.48 ग्राम) सोना या इसके बराबर रक़म (सोने या चाँदी में जिसकी भी मौजूदा क़ीमत कम हो उसके बराबर रक़म) या व्यवसाय के इरादे से ख़रीदी हुई वस्तु, माल, ज़मीन वग़ैरह वग़ैरह पर इस तरह मालिक होने की सूरत में कि एक हिजरी साल गुज़र जाये तो उसको साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी कुल सालाना बचत (रक़म, व्यावसायिक माल, सोना , चाँदी वग़ैरह वग़ैरह) का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना उस मुसलमान का इस्लामी कर्तव्य है । इस दान को ज़कात कहते हैं।