कांगड़ा दुर्ग

कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। कांगड़ा, धर्मशाला से २० किमी दूर है।

कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। यह दुर्ग पुराना कांगड़ा में स्थित है। इससे सबसे नजदीकि रेल स्टेशन कांगडा ही है जहांपर नैरो गैज की रेल लाइन है। यह रेल स्टेशन समुंद्र से ६६८.५३१ मीटर की ऊंचाई पर है। इस रेल स्टेशन से यह दुर्ग महज ३ किमी दूर है व नये कांगडा से ५ किमी तथा धर्मशाला से २० किमी दूर है।

पुरातन काल में कांगड़ा दुर्ग को कांगड़ा नागरकोट एवं त्रिगर्त नाम से भी जाना जाता था। त्रिगर्त साम्राज्य निचली ब्यास बाण-गंगा घाटी में फैला हुआ था। पंजाब के अंतर्ग़त आने वाले पहाडी राज्यों में से क...आगे पढ़ें

कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। कांगड़ा, धर्मशाला से २० किमी दूर है।

कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। यह दुर्ग पुराना कांगड़ा में स्थित है। इससे सबसे नजदीकि रेल स्टेशन कांगडा ही है जहांपर नैरो गैज की रेल लाइन है। यह रेल स्टेशन समुंद्र से ६६८.५३१ मीटर की ऊंचाई पर है। इस रेल स्टेशन से यह दुर्ग महज ३ किमी दूर है व नये कांगडा से ५ किमी तथा धर्मशाला से २० किमी दूर है।

पुरातन काल में कांगड़ा दुर्ग को कांगड़ा नागरकोट एवं त्रिगर्त नाम से भी जाना जाता था। त्रिगर्त साम्राज्य निचली ब्यास बाण-गंगा घाटी में फैला हुआ था। पंजाब के अंतर्ग़त आने वाले पहाडी राज्यों में से कांगडा सबसे प्राचीन और शक्तिशाली था और यह पूर्व-इस्लामिक काल में जलंधर राज्य का ही एक भाग था। भारत के उत्तरी भागों को मुस्लिम शासकों व्दारा जीत लेने के पश्चात, जब पंजाब के मैदानी क्षेत्रों पर मुस्लिम शासकों का अधिकार हो गया तो जलंधर के शासकों ने कांगडा की ओर कुच किया लिया और टूटे हुये साम्राज्य को कांगडा से गठित करने का प्रयास किया।

कांगड़ा दुर्ग अपने सामारिक अवस्थति, वैभव और अभेद्यता के लिये जाना जाता है। मांझी और बाण-ग़ंगा नदियों के संगम पर एक चोटी पहाडी पर शीला खंड के रुप मे स्थित, दुर्ग संपूर्ण कांगडा घाटी का पर्यवेक्षण करता दिखता है। यह पहाड़ी एक प्राक्रुतिक दुर्ग के रुप में भी उभर कर आती है। दुर्ग की दिवारे परिधि मे ४ किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और नदी की सतह से ३०० फुट तक ऊंची है, जो पुरानी कांगडा की ओर एक छोटे भूमि भाग को छोडकर तीनों दिशाओं में पहाडी से घिरी है। दुर्ग में एक छोटे रास्ते से प्रवेश किया जा सकता है। जिसके दोनो व्दार एक दुसरे से सटे हुये है। जिन्हें सिख अधिग्रहण के काल से फाटक कहा जाता है। एक संकरा रास्ता दुर्ग के आहनी और अमिरि दरवाजे से होकर आंतरिक भाग कि ओर जाता है जिनका निर्माण कांगडा के प्रथम मुगल बादशाह जहांगिर के समय में हुआ था।

Photographies by:
Ajay Kumar - CC BY-SA 4.0
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