काठमाण्डु

काठमाण्डु (नेपालभाषा :येँ देय्, प्राचीन नेपाल भाषा- ञे देय्, संस्कृत- काष्ठमण्डप, नेपाली- काठमाडौँ), नेपाल की राजधानी है। यह नगर समुद्रतल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं और 50.8 वर्ग किमी में फैला हुआ हैं। काठमाण्डु नेपाल का सबसे बड़ा शहर है, जहां पर्यटक का सबसे ज़्यादा आगमन होता हैं। चार ओर से पहाड़ियों से घिरा काठमाण्डु उपत्यका के पश्चिमी क्षेत्र में अवस्थित यह नगर, यूनेस्को की विश्‍व धरोहरों में शामिल हैं। यहाँ की रंगीन संस्कृति और परम्पराओं के अलावा विशिष्ट शैली में बने शानदार घर सैलानियों को आकर्षित करते हैं। यहाँ के विश्वप्रसिद्ध मन्दिर, पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हैं। साथ ही यहां के प्राचीन बाज़ारों की रौनक भी देखते ही बनती है।

काठमांडू के सबसे प्राचीन सभ्यता का ऐतिहासिक प्रमाण नही है, परन्तु इस के बारे में विभिन्न धार्मिक पुस्तक एवं वंशावलीयौं मे लिखा हुवा है। स्वयंभू पुराण अनुसार काठमांडू उपत्यका एक विशाल तालाब था। महाचीन के बोधिसत्त्व मंजुश्री ने इस तालाब के दक्षिणी भाग में अवस्थित कक्षपाल पर्वत और गुह्येश्वरी क्षेत्र में अपने चन्द्रह्रास खड्ग से प्रहार करके इस तालाब के पानी को निकाल दिया।[1][2] भूगोलविद भी यह तथ्य मानते है कि काठमाडौं पहले एक तालाब था। मंजुश्री ने धर्म रक्षित राज्य स्थापना करने के लिए एक मंजुपतन नगर का स्थापना किया (हाल के मजिपात टोल के स्थान में) और धर्माकर को इस नये राज्य का राजा बनाकर चीन लौटे।

 मंजुश्री (चन्द्रह्रास खड्ग सहित), बोधिसत्त्व जिन्हे काठमांडू निर्माण का श्रेय दिया जाता है।

गोपाल वंशावली अनुसार गोपाल वंश के लोग इस स्थान में भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी के रूप में गाय चराते हुए इस स्थान पर पहुंचे और यहा बस गए।

परापूर्वकाल

पुरातात्विक खुदाइ से मिले जानकारी अनुसार काठमांडू मध्य हिमाली क्षेत्र के प्राचीनतम बस्ती में से एक है।[2] विभिन्न खुदाइ से १६७ इपू से लेकर १ इसं का ईंट काठमांडू और इस के आसपास के क्षेत्र में मिला है।[2]

किरांतकाल

किरांतकाल के काठमांडू का ज्यादा निश्चित अवशेष उपलब्ध नहीं है।

लिच्छविकाल

लिच्छवि वंश के राजा गुणकाम देव के समय से पहले काठमांडू में (हाल के काठमांडौं महानगरपालिका के कोर सिटी में) दक्षिण में दक्षिण कोलिग्राम (मंजुपत्तन/यंगाल) और उत्तर में यंबु /कोलिग्राम (गौ पालकौं का बस्ती) नामक दो अलग अलग बस्ती थे।[2] यह दो बस्ती एक खड्ग आकार के उठा हुआ जमिन पर अवस्थित था जिस के तीन तरफ़ नदी या जल थे (विष्णुमती, बागमती और टुकुचा) और एक तरफ क्लिफ के निचे जंगल था। सामरिक दृष्टिकोण से यह जगह नगर बनाने के लिए उपयुक्त था। अतः गुणकामदेव नें इन दो बस्तीयौं के बीच में (दोनों बस्तीयौं को समायोजित करके) विष्णुमती नदी के किनारे कांतिपुर नगर स्थापना किया। यह नगर के चारो तरफ़ खडग आकार में अष्टमात्रिका वा अजिमायुक्त शक्तिपीठ (दुर्ग) का स्थापना किया, जो अभी भी शक्तिपीठौं के रूप में पुजित है।[2] नेपाल के पहाडीयौं के बीच कांतिपुर जैसा सुरक्षित नगर के स्थापना से भारत और चीन-तिब्बत के बीच मे व्यापार सहज हो सकता था। अतः गुणकामदेव नें इस नगर में व्यापारिक सुविधा के हेतु चक्राकार में व्यापारिक क्षेत्र स्थापना किया।[3]

ऐसा माना जाता है कि नेपाल संबत के एक माह येँला (कान्तिपुर का माह) और उस माह के पुर्णिमा में मनाया जानेवाला येँया पुन्हि वा इन्द्र जात्रा कान्तिपुर के स्थापना के उपलक्ष्य पर गुणकामदेव नें मनाना शुरु किया था। इस माह में दक्षिण कोलिग्राम का लाखेजात्रा उत्तर में और कोलिग्राम का पुलुकिसि (ऐरावत) नृत्य दक्षिण में नचाया जाता है।

मल्लकाल  मल्लकुल के इष्टदेवी तलेजुभवानी का मंदिर

सन १२०० से सन १७६८ तक इस नगर में मल्ल राजाऔं का राज रहा।[2] मल्लकाल में यह नगर नेपाली मल्ल गणराज्यौं मे से एक कांतिपुर राज्य का राजधानी रहा। इस काल में यह नगर में कला का बहुत विकास और विस्तार हुआ।[2] यह नगर के ज्यादा मंदिर, चैत्य आदि इसी काल में निर्माण हुआ था। इस काल में इस नगर में धार्मिक सहिष्णुता, तंत्र विद्या, वास्तु, अर्थतंत्र आदि का विकास एवं विस्तार हुआ। इस काल में कांतिपुर लगायत के नेपाली मल्ल गणराज्य में रहने वाले विभिन्न नश्ल, धर्म, जाति आदि के लोगों नें एक संगठित राज्य का रूप लिया और इस राज्य में रहने वाले लोगों को नेपामि, नेवा वा नेपाली कहा गया।

सन १७६० के दशक में काठमांडू मे आए हुए क्रिस्चियन पादरी नें उस समय में काठमांडू में १८,००० होनेका ज़िक्र किया है।[2]

शाहकाल

गोरखा के राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1768 में मल्ल गणराज्य का अन्त्य कर गोर्खाली नेपाल राज्य का स्थापना किया। गोर्खालीद्वारा कान्तिपुर नगर के विजय के साथ ही कान्तिपुर नगर वा काठमांडू गोर्खाली नेपाल का राजधानी बन गया। शाह के हुक्म में राणाऔं के समय में इस नगर में राजप्रासाद तथा महल निर्माण में नेपाली वास्तु का प्रयोजन छोडकर मुघल एवं पाश्चात्य वास्तु का अनुशरण शुरु हुआ। राणाऔं के समय में बना सिंह दरबार एक विश्वप्रसिद्ध दरबार है जिसमे अभी नेपाल के प्रधानमंत्री लगायत प्रायः मंत्रालय, सर्वोच्च अदालत आदि अवस्थित है। सन १९३४ का महाभूकंप नें नगर के प्रायः क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया। परन्तु, इस भूकंप के बाद यह नगर पहले के ही स्वरूप में फिर बनाया गया।[2] भूकंप के बाद नगर में न्यु रोड नामक मार्ग बनाया गया जहां बेलायती शैली में घर, पार्क, दोकान, सिनेमाघर आदि का निर्माण किया गया। 1950 में इस शहर की सीमाएं विदेशी पर्यटकों के लिए खोली गईं थीं। तब से आज तक सैलानियों के यहां आने का सिलसिला जारी है।

संक्षिप्त स्वयम्भू पुराण ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ "काठमांडू महानगरपालिका". मूल से 4 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 दिसंबर 2017. पुस्तकः कान्तिपुर, लेखक बासु पासा
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