शहीद मीनार, ढाका

शहीद मीनार ( बांग्ला: শহীদ মিনার), बांग्लादेश की राजधानी ढाका, में स्थित एक राष्ट्रीय स्मारक है, जिसे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 1952 के बांग्ला भाषा आंदोलन के प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों की याद में स्थापित किया गया था।

21 और 22 फरवरी 1952 को, ढाका विश्वविद्यालय और ढाका मेडिकल कॉलेज के छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए, जब पाकिस्तानी पुलिस बल ने बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की मांग कर रहे बंगाली प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं। यह नरसंहार ढाका मेडिकल कॉलेज और ढाका में रमना पार्क के पास हुआ था। 23 फरवरी को ढाका मेडिकल कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों द्वारा एक अस्थायी स्मारक बनाया गया था, लेकिन उसे जल्द ही 24 फरवरी को पाकिस्तानी पुलिस बल द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।

इसके बाद भाषा आंदोलन ने गति पकड की, और एक लंबे संघर्ष के बाद, 1956 में पाकिस्तान में बांग्ला भाषा (उर्दु के साथ) को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया गया। मृतकों की स्मृति में स्थापित इस शहीद मीनार को बांग्लादेशी मूर्तिकारों हमीदुर रहमान ने नोवेरा अहमद के साथ मिलकर ड...आगे पढ़ें

शहीद मीनार ( बांग्ला: শহীদ মিনার), बांग्लादेश की राजधानी ढाका, में स्थित एक राष्ट्रीय स्मारक है, जिसे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 1952 के बांग्ला भाषा आंदोलन के प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों की याद में स्थापित किया गया था।

21 और 22 फरवरी 1952 को, ढाका विश्वविद्यालय और ढाका मेडिकल कॉलेज के छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए, जब पाकिस्तानी पुलिस बल ने बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की मांग कर रहे बंगाली प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं। यह नरसंहार ढाका मेडिकल कॉलेज और ढाका में रमना पार्क के पास हुआ था। 23 फरवरी को ढाका मेडिकल कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों द्वारा एक अस्थायी स्मारक बनाया गया था, लेकिन उसे जल्द ही 24 फरवरी को पाकिस्तानी पुलिस बल द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।

इसके बाद भाषा आंदोलन ने गति पकड की, और एक लंबे संघर्ष के बाद, 1956 में पाकिस्तान में बांग्ला भाषा (उर्दु के साथ) को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा दे दिया गया। मृतकों की स्मृति में स्थापित इस शहीद मीनार को बांग्लादेशी मूर्तिकारों हमीदुर रहमान ने नोवेरा अहमद के साथ मिलकर डिजाइन और निर्मित किया था। मार्शल लॉ के कारण निर्माण में देरी हुई, लेकिन स्मारक अंततः 1963 में पूरा हुआ, और 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध तक खड़ा रहा, जब ऑपरेशन सर्चलाइट के दौरान इसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था। बांग्लादेश को स्वतंत्रता मिलने के बाद, इसे फिर से बनाया गया और 1983 में इसका विस्तार किया गया।

प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को यहाँ भाषा आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में शहीद दिवस का आयोजन किया जाता है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय, शोक, सांस्कृतिक और अन्य गतिविधियों आयोजित की जाती हैं। 2000 से, 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

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Subhajit Dutta - CC BY-SA 3.0
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