विवेकानन्द स्मारक शिला


विवेकानन्द स्मारक शिला (Vivekananda Rock Memorial) भारत के तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है। यह भुमि-तट से लगभग ५०० मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के उपर निर्मित किया गया है।एकनाथ रानडे ने विवेकानंद शिला पर विवेकानंद स्मारक मन्दिर बनाने में विशेष कार्य किया। एकनाथ रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह थे।

समुद्र तट से पचास फुट ऊंचाई पर निर्मित यह भव्य और विशाल प्रस्तर कृति विश्व के पर्यटन मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण आकर्षण केन्द्र बनकर उभर आई है। इसे बनाने के लिए लगभग ७३ हजार विशाल प्रस्तर खण्डों को समुद्र तट पर स्थित कार्यशाला में कलाकृतियों से सज्जित करके समुद्री मार्ग से शिला पर पहुंचाया गया। इनमें कितने ही प्रस्तर खण्डों का भार 13 टन तक था। स्मारक के विशाल फर्श के लिए प्रयुक्त प्रस्तर खण्डों के आंकड़े इसके अतिरिक्त हैं। इस स्मारक के निर्माण में लगभग ६५० कारीगरों ने २०८१ दिनों तक रात-दिन श्रमदान किया। कुल मिलाकर ७८ लाख मानव घंटे इस तीर्थ की प्रस्तर काया को आकार देने में...आगे पढ़ें


विवेकानन्द स्मारक शिला (Vivekananda Rock Memorial) भारत के तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है। यह भुमि-तट से लगभग ५०० मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के उपर निर्मित किया गया है।एकनाथ रानडे ने विवेकानंद शिला पर विवेकानंद स्मारक मन्दिर बनाने में विशेष कार्य किया। एकनाथ रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह थे।

समुद्र तट से पचास फुट ऊंचाई पर निर्मित यह भव्य और विशाल प्रस्तर कृति विश्व के पर्यटन मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण आकर्षण केन्द्र बनकर उभर आई है। इसे बनाने के लिए लगभग ७३ हजार विशाल प्रस्तर खण्डों को समुद्र तट पर स्थित कार्यशाला में कलाकृतियों से सज्जित करके समुद्री मार्ग से शिला पर पहुंचाया गया। इनमें कितने ही प्रस्तर खण्डों का भार 13 टन तक था। स्मारक के विशाल फर्श के लिए प्रयुक्त प्रस्तर खण्डों के आंकड़े इसके अतिरिक्त हैं। इस स्मारक के निर्माण में लगभग ६५० कारीगरों ने २०८१ दिनों तक रात-दिन श्रमदान किया। कुल मिलाकर ७८ लाख मानव घंटे इस तीर्थ की प्रस्तर काया को आकार देने में लगे। २ सितम्बर, १९७० को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. वी.वी. गिरि ने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि की अध्यक्षता में आयोजित एक विराट समारोह में इस स्मारक का उद्घाटन हुआ।

सन 1963 को विवेकानन्द जन्मशताब्दी समारोह में तमिल नाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम 'विवेकानन्द शिला' रखना चाहिए और उसपर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित करली। स्वामी चिद्भवानन्द इस कार्य में जुट गये। पर इस मांग से तमिलनाडु का कैथोलिक चर्च घबरा उठा, और डरने लगा कहीं यह काम हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना न भर दे, मिशन की राह में यह प्रस्ताव चर्च को बड़ा रोड़ा लगा। चर्च ने उस शिला को विवेकानन्द शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए।

मतान्तरित ईसाई नाविकों ने हिन्दुओं को समुद्र तट से शिला तक ले जाने से मना कर दिया। इस स्थिति का सामना करने के लिए संघ के स्वयंसेवक बालन और लक्ष्मण कन्याकुमारी के समुद्र में कूदकर तैरते हुए शिला तक पहुँच गये। एक रात रहस्यमयी तरीके से क्रॉस गायब हो गये। पूरे कन्याकुमारी जिले में संघर्ष की तनाव भरी स्थिति पैदा हो गयी और राज्य कांग्रेस सरकार ने धारा 144 लागू कर दी।

दत्ता जी दिदोलकर की प्रेरणा से मन्मथ पद्मनाभन की अध्यक्षता में अखिल भारतीय विवेकानन्द शिला स्मारक समिति का गठन हुआ और घोषणा हुई कि 12 जनवरी, 1963 से आरम्भ होने वाले स्वामी विवेकानन्द जन्म शताब्दी वर्ष की पूर्णाहुति होने तक वे शिला पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कर देंगे। समिति ने 17 जनवरी, 1963 को शिला पर एक प्रस्तर पट्टी स्थापित कर दी। किन्तु 16 मई, 1963 को इस पट्टिका को रात के अंधेरे में ईसाइयों ने तोड़कर समुद्र में फेंक दिया। स्थिति फिर बहुत तनावपूर्ण हो गयी। स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने सरकार्यवाह एकनाथ रानडे जी को यह कार्य सौंपा।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम विवेकानन्द स्मारक के निर्माण पक्ष में थे। पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर रोड़े अटका रहे थे। कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर एकनाथ रानाडे ने मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया। रानाडे जी ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता विचारधारा” में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुंच गए। जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।” कांग्रेस हो या समाजवादी, साम्यवादी हो या द्रविड़ नेता सभी ने एक स्वर में हामी भरी।

 कन्याकुमारी शिला पर निर्मित मन्दिर

अनुमति तो मिल गई किन्तु धन कहाँ से आए? एकनाथ रानडे ने हर प्रान्त से सहयोग मांगा, चाहे जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला हों या नागालैंड के होकिशे सेमा। सभी ने सहयोग किया। सत्ता में कोई भी पार्टी हो, फिर भी लगभग सभी राज्य सरकारों ने १-१ लाख का दान दिया। स्मारक के लिए पहला दान “चिन्मय मिशन” के स्वामी चिन्मयानन्द द्वारा दिया गया। समाज को स्मारक से जोड़ने के लिए लगभग ३० लाख लोगों ने १, २ और ५ रूपए भेंट स्वरूप दिए। उस समय के लगभग १ प्रतिशत युवाओं ने इसमें भाग लिया। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानन्द महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और इसका औपचारिक उद्घाटन 2 सितम्बर 1970 को भारत के राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि ने किया। उद्घाटन समारोह लगभग 2 महीने तक चला जिसमें भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी भाग लिया।

स्मारक को जीवन्त रूप देने के लिए “विवेकानन्द केन्द्र - एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन” की स्थापना ७ जनवरी १९७२ को की गई। विवेकानन्द केन्द्र के हजारों कार्यकर्ता जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं विकास, प्राकृतिक संसाधन विकास, सांस्कृतिक अनुसंधान, प्रकाशन, युवा प्रेरणा, बच्चों के लिए संस्कार वर्ग एवं योग वर्ग आदि गतिविधियां संचालित करते हैं।

Photographies by:
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